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समाचार कोड: 367408
8 अप्रैल 2021 - 11:18
रज़ा सिरसिवी

हौज़ा / स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब स्वयं एक उत्तम स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी शायरी मे भी महिमा और आकर्षण था। दर्जनों ग़ज़लें और सैकड़ों मनकबत एक ही भूमि में कही जा सकती हैं, लेकिन एक ही स्थिति में, अंतिम सांस तक वजअ व कतअ को बाकी रखना यह केवल एक अच्छे आदमी का ही काम है। रवैया मे कृत्रिम प्रतिभा नहीं बल्कि स्वाभाविक और सहज ईमानदारी थी। आज खुतबा, शोअरा, बानियाने मजालिस वा महाफिलो के दिलो की वसअत को देखने के बजाए वो अपने आत्मसम्मान को देखते थे।

हवजा न्यूज एजेंसी

हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद सलमान आबिदी जैदी द्वारा लिखित

गंभीरता, संयम, सरलता, ईमानदारी, प्रेम, समाजक्षमता, विनम्रता, निष्ठा, शुद्ध मुस्कान, आत्म बलिदान और गर्मजोशी अर्थात ऐसी कौनसी विशेषता है जो रज़ा सिरसिवी साहब मे नही थी?

एक शायर को पहले एक अच्छा इंसान होना चाहिए। एक शायर जितना बेहतर होगा, उसकी शायरी उतनी ही अच्छी होगी।

स्वार्थ, सत्य, निस्वार्थता और निस्वार्थता अच्छी चीजें हैं जो एक शायर के पास होनी चाहिए।

सच्चाई के लिए लड़ना, झूठ से समझौता नहीं करना, शोषण के खिलाफ बोलना और शोषितों से प्यार करना अच्छी बातें हैं जो एक शायर मे होनी चाहिए।

नजर मे बुलंदी, शब्दों की गर्माहट और दिल और आत्मा की गर्माहट अच्छी बातें हैं। एक शायर के पास एक अच्छी शायरी के लिए एक ही दृष्टिकोण होना चाहिए। निबंधों के प्रयोग और प्रारूपण में नए प्रयोगों के लिए ज़रूरी नवाचारों का प्रयोग। एक अच्छे शायर के लिए, विचार की पवित्रता, चरित्र, शुद्धता, गति और उच्च मानवीय गुणों का संयम होना चाहिए क्योंकि व्यक्तित्व का प्रभाव शायरी है।

एक शायर,  फिल्म अभिनेता, कॉलेज के लेकच्रार और एक क्रिकेट खिलाड़ी से अलग होता है। एक क्रिकेट खिलाड़ी का गुण क्या है?

क्या वह झूठ नहीं बोलता? यही उसका गुण है। वह चोरी नहीं करता है, वह व्यभिचार नहीं करता है, वह नमाज और रोजे का पाबंद  है। क्या ये सभी चीजें उसके खेल का मानक हैं? नहीं, एक अच्छा खिलाड़ी वह है जो अधिकतम रन बनाता है और अधिकतम विकेट लेता है। अब अगर वह झूठ नहीं बोलता तो वह उसकी इजाफी खूबी है। लेकिन सिर्फ इसलिए कि वह झूठा है, उससे उसके खेल की गुणवत्ता को कम नहीं करता। जब वह गेंद को पकड़ता है, जब वह कूदता है, तो उसका झूठ उछाल से बाहर नहीं आता है, लेकिन जब एक शायर शेर कहता है, उसका झूठ सामने आ जाता है,  एक कंटेनर से वही टपकता है जो उसके अंदर होता है।

तुझे हम वली समझते जो ना बादा खार होता

गो हाथ मे जुंबिश नही आंखो मे तो दम है

रहने दो अभी सागर व मीना मेरे आगे

अल्लाह रे हिजाबे बदगुमानी तेरी

भेजी भी तो बस निस्फ बदन की तस्वीर

साफ छुपते भी नही सामने आते भी नही

क़त्ल कर डाला मगर हाथ मे तलवार नही

आखिरी वक़्त मे क्या ख़ाक मुसलमां होंगे?

हूर की रफ़ाक़त थी हौज़ का किनारा था

ये सभी अशआर और मिसरे चोटी के शायरो के हैं। अमीर मीनई मौलवी के पुत्र और वे खुद भी मौलवी भी थे। उनकी शायरी पढ़ें। मेरे शब्दों की पुष्टि हो जाएगी।

शायर को पहले एक अच्छा आदमी होना चाहिए और यह केवल शायर के लिए ही नहीं, बल्कि शायर के प्रशंसक के लिए भी प्रतिबद्धता है। अन्यथा, आप देख सकते हैं कि आज नौहो के साथ जो हुआ और जो हो रहा है और क्या हो रहा है वो आप देख ही रहे है। तरन्नुम के रिस्या सामेईन और शोअरा ने मनकबतो को भजन बना दिया हैं। इसकी असल वजह आला अखलाकी गुणो की कमी है।

स्वर्गीय रज़ा सिरसिवी साहब स्वयं एक उत्तम स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए उनकी शायरी में भी लालित्य और आकर्षण पाया गया।दर्जनों ग़ज़लें और सैकड़ों मनकबत एक ही भूमि में कही जा सकती हैं, लेकिन एक ही स्थिति में, अंतिम सांस तक वजअ व कतअ को बाकी रखना यह केवल एक अच्छे आदमी का ही काम है। रवैया मे कृत्रिम प्रतिभा नहीं बल्कि स्वाभाविक और सहज ईमानदारी थी। आज खुतबा, शोअरा, बानियाने मजालिस वा महाफिलो के दिलो की वसअत को देखने के बजाए वो अपने आत्मसम्मान को देखते थे। वह एक संवेदनशील शायर थे। व्यक्तिगत विशेषता के अलावा। उनकी शायरी की विशेषता भावना का प्रसारण है। "माँ" शीर्षक के तहत उन्होंने जो नज़्म लिखी है, उसमें कोई विशेष कलात्मक पूर्णता नहीं है। यह सरल और सहज है। शब्दों का उपयोग कभी-कभी अप्रचलित शब्दों (रांडो का काफला आदि) का भी इस्तेमाल किया है, लेकिन प्रसिद्धि की ऊँचाई तक पहुँचने का अस्ल कारण पूरी नज़्म में "संचरण भावना" का तत्व है और केवल एक पूर्ण शायर ही ऐसी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है क्योंकि शब्द भावनाओं को व्यक्त करते हैं। 

मैं पाठकों से माफी मांगता हूं कि समय की कमी के कारण मैं लेख को अधूरा छोड़ रहा हूं। फिर कभी रजा सिरसिवी साहब की शायरी की फन्नी विशेषता पर लिखूंगा।

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